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मानसिक रोग: फोबिया क्या होता ??? और कैसे ये भयंकर रूप ले लेता है समय के साथ  

फोबिया का प्रमुख कारण है डर।  किसी भी खौफ की तमाम सीमाएं लांघ जाता है तो फोबिया बन जाता है.
फोबिया यानी खौफ वाकई एक भयंकर डर है लेकिन भय और फोबिया के बीच अंतर को महज इस की तीव्रता से नहीं आंका जा सकता. फोबिया किसी व्यक्ति की मानसिकता पर इतना गहरा असर डालता है कि बहुत कम समय के लिए उस का मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है. यह एक बेवजह का तात्कालिक भय है.
भय किसी वास्तविक या आभासी खतरे की एक मानसिक प्रतिक्रिया है. लोगों में भय होना आम बात है और यह अकसर सामान्य ही होता है यानी किसी वस्तु या घटना को देख कर उपजी इस स्थिति में कोई नुकसान नहीं होता. मसलन, कई लोग मकड़ी को देख कर डर जाते हैं, इसे देख कर उन में हलकीफुलकी उत्तेजना का अनुभव होता है.
भय सामान्य होता है और असल में यह हमारे रक्षातंत्र का ही एक हिस्सा होता है. कुछ ऐसी चीजें होती हैं जिन से हमें डर लगता है, इसलिए हम भाग खड़े होते हैं या ऐसे हालात की अनदेखी कर देते हैं. मसलन, किसी वास्तविक खतरे को देख कर भय का एहसास होना लाजिमी है. यदि कोई व्यक्ति आप के ऊपर बंदूक तान दे तो जाहिर है कि आप डर जाएंगे. लेकिन इस भय का आलम उतना खौफनाक नहीं होता. यदि हम वाकई किसी खतरे का एहसास करते हैं तो भय होना स्वाभाविक है.

लेकिन फोबिया की स्थिति में भय का स्तर खौफनाक होता है, इसलिए इस की तीव्रता अतार्किक होती है. यह फोबिया वास्तविक खतरे पर आधारित नहीं होता, इसलिए इस के प्रति इतनी जबरदस्त प्रतिक्रिया व्यक्त करने का कोई वास्तविक आधार नहीं होता.

फोबिया के प्रकार

फोबिया को 3 प्रकार से बांटा जा सकता है – सोशल फोबिया, स्पेसिफिक फोबिया, एगोराफोबिया.
सोशल फोबिया
जैसा नाम से ही हमे पता चलता है की सोशल फोबिया के दौरान पीडि़त कुछ हालात से डरने लगता है. वह उन सामाजिक कार्यों को नजरअंदाज करता है और कभीकभी ऐसे हालात में उसे शर्मिंदगी भी झेलनी पड़ती है.
इस में पीडि़त को हमेशा ऐसा लगता है कि लोग उस के बारे में बुरा सोचते हैं और उसे बहुत बुरा समझते हैं. लोग उस के पीठपीछे उस की बुराइयां करते रहते हैं. उस के ऊपर हंसते हैं. पीडि़त खुद को बहुत निम्न समझने लगता है. उस का आत्मविश्वास खो जाता है. किसी भी इंटरव्यू या फिर पब्लिक मीटिंग में वह बोल भी नहीं पाता है. उसे वहां खड़े होने में भी लड़खड़ाहट होने लगती है. हालांकि पीडि़त को यह पता होता है कि यह डर बेबुनियाद है लेकिन तब भी बेचैनी और घबराहट उस का पीछा नहीं छोड़ती है.
पीडि़त को किसी से बात करने और मिलने में भी डर लगता है. अगर वह किसी से बात कर ले तो उस के दिमाग में यही चलता रहता है कि अब तो लोग उस का मजाक उड़ाएंगे और दूसरों के साथ उस की तुलना करेंगे. बढ़तेबढ़ते हालात यहां तक पहुंच जाते हैं कि पीडि़त किसी शादीब्याह, मीटिंग या इंटरव्यू में जाना ही नहीं चाहता. ऐसे कार्यों को वह नजरअंदाज करने लगता है, जैसे नए लोगों से मिलना, सार्वजनिक शौचालयों का इस्तेमाल करना, कक्षा में अपना नाम बुलाए जाने पर, डेट पर जाना, किसी को फोन करना, औफिस में सब के सामने चुप रहना, अपनी बात को भी सब के सामने व्यक्त न कर पाना आदि.
स्पेसिफिक फोबिया
स्पेसिफिक फोबिया में किसी खास वस्तु या व्यक्ति या हालात से डर लगता है. ऐसे में व्यक्ति कभीकभी जरूरत से ज्यादा खुश भी हो सकता है या अधिक दुखी भी.
यह एक ऐसा साधारण डर होता है जोकि किसी निर्धारित वस्तु या फिर हालात को देख कर पैदा होता है. जैसे ही पीडि़त उन हालात के बारे में सोचता है, परेशान सा होने लगता है. उसे अत्यंत घबराहट होने लगती है. इन हालात में पीडि़त काम भी नहीं कर पाता है. उस की कार्यशैली प्रभावित होने लगती है. कुछ विशिष्ट प्रकार के फोबिया ये हैं :
एनिमल फोबिया : जानवरों से लगने वाला डर यानी कुछ लोगों को कुत्तों, बिल्लियों, सांप, कीड़ेमकोड़ों आदि से बेहद डर लगता है.
नैचुरल एनवायरमैंट फोबिया : पानी, तूफान, ऊंचाई आदि से डरना.
ब्लड, इंजैक्शन, चोट आदि से फोबिया : कई लोगों को खून देनालेना, अपना या किसी का खून निकलते हुए देख लेने से भी चक्कर आ जाते हैं. इंजैक्शन देख कर ही उन के पसीने छूट जाते हैं.
एगोराफोबिया
एगोराफोबिया में पीडि़त को भीड़ में भी अकेलेपन का एहसास होता है. वह किसी भी सुपरमार्केट में अकेला महसूस करने लगता है और यह एहसास व्यक्ति को बेहद कचोटने लगता है. इस स्थिति को एगोराफोबिया कहते हैं. यह भयाक्रांत हुए मरीजों में से एकतिहाई को प्रभावित करता है.
कभीकभी एगोराफोबिया से ग्रस्त मरीज अकेला घर से बाहर नहीं निकल पाता और परिवार के किसी खास सदस्य या मित्र के साथ ही कहीं जाता है. अपनेआप को सुरक्षित क्षेत्र में कैद कर लेने के बावजूद एगोराफोबिया से पीडि़त बहुत से लोगों को कई बार दौरा पड़ ही जाता है.
एगोराफोबिया से ग्रस्त मरीज अपनी स्थिति के चलते गंभीर रूप से पंगु बन जाते हैं. कुछ मरीज अपना काम नहीं कर पाते और अपने परिवार के दूसरे सदस्यों पर पूरी तरह से आश्रित होने पर मजबूर हो सकते हैं जो उन के लिए न सिर्फ खरीदारी करते हैं और उन की पारिवारिक समस्याओं को न समझते हैं बल्कि उस के द्वारा बनाए गए सुरक्षित क्षेत्र से बाहर भी उस के साथ जाते हैं. इस तरह एगोराफोबिया से ग्रस्त व्यक्ति परजीवी हो जाता है और बड़ी ही परेशानी में अपना जीवनयापन करता है.

फोबिया के कारण

शोधकर्ता अभी फोबिया के सही कारणों के बारे में आश्वस्त नहीं हैं. हालांकि आम धारणा यही है कि जब कोई फोबिया होता है तो कुछ खास प्रकार के कारकों की समानता देखी जा सकती है. इन कारकों में शामिल हैं :
आनुवंशिक : शोध से पता चला है कि परिवार में किसी खास प्रकार का फोबिया होता है. मसलन, अलगअलग जगह पलेबढ़े बच्चों में एक ही प्रकार का फोबिया हो सकता है. हालांकि एक प्रकार के फोबिया वाले कई लोगों की परिस्थितियों का आपस में कोई संबंध नहीं होता.
सांस्कृतिक कारक : कुछ फोबिया किसी खास प्रकार के सांस्कृतिक समूहों में ही पाए जाते हैं. यह एक ऐसा भय है जिस में लोग सामाजिक परिस्थितियों के कारण दूसरों पर हमला करते हैं या उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं. यह परंपरागत सोशल फोबिया से बिलकुल अलग होता है क्योंकि सोशल फोबिया में पीडि़त व्यक्ति अपमानित होने पर व्यक्तिगत शर्मिंदगी झेलने की आशंका से ग्रसित रहता है. सो संभव है कि फोबिया विकसित करने में संस्कृति की भूमिका हो.
जिंदगी के अनुभव : कई प्रकार के फोबिया वास्तविक जिंदगी की घटनाओं से जुड़े होते हैं जिन्हें होशोहवास में याद किया भी जा सकता है और नहीं भी. मसलन, किसी कुत्ते का फोबिया, यह व्यक्ति को उसी वक्त से हो सकता है जब बहुत छोटी उम्र में वह कुत्ते का हमला झेल चुका हो. सोशल फोबिया नाबालिग उम्र के अल्हड़पन या बचपन की शैतानी से विकसित हो सकता है.
हो सकता है कि इन कारकों का एक मिश्रित रूप किसी फोबिया के विकसित होने का कारण बना हो लेकिन निर्णायक निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले अभी और ज्यादा शोध की आवश्यकता है. किसी व्यक्ति में कोई फोबिया बचपन से ही होता है या किसी को बाद की उम्र में पनप सकता है. कोई भी फोबिया बचपन, जवानी या किशोरावस्था के दौरान विकसित हो सकता है. फोबिया से ग्रस्त लोगों का ताल्लुक अकसर किसी डरावनी घटना या तनावपूर्ण माहौल से रहा है हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि कुछ खास प्रकार के फोबिया क्यों विकसित होते हैं.

फोबिया के इलाज

फोबिया से पीडि़त व्यक्ति की सोच में बदलाव लाने में मदद करते हुए उन के फोबिक लक्षणों को कौग्निटिव बिहेवियरल थैरेपी यानी सीबीटी से कमी लाने में बहुत हद तक सफलता मिली है. यह लक्ष्य हासिल करने के लिए सीबीटी का इस्तेमाल 3 तकनीकों से किया जाता है :
शिक्षाप्रद सामग्री : इस चरण में व्यक्ति को फोबिया व इस के इलाज के बारे में शिक्षित किया जाता है और उसे उपचार के लिए सकारात्मक उम्मीद बनाए रखने में मदद की जाती है. इस के अलावा फोबिया से पीडि़त व्यक्ति को सहयोग देने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है.
संज्ञानात्मक अवयव : इस से विचारों तथा कल्पनाओं की पहचान करने में मदद मिलती है, जिस से व्यक्ति का बरताव प्रभावित होता है, खासकर ऐसे लोगों का जो पहले से ही खुद को फोबियाग्रस्त होने की धारणा पाल बैठते हैं.
व्यावहारिक अवयव : इस के तहत फोबियाग्रस्त व्यक्ति को समस्याओं से अधिक प्रभावी रणनीतियों के साथ निबटने की शिक्षा देने के लिए व्यवहार संशोधन तकनीक इस्तेमाल की जाती है.
फोबिया कई बार अवसादरोधी या उत्तेजनारोधी उपचार से भी ठीक किया जाता है, जिस से प्रतिकूल स्थिति पैदा करने वाले शारीरिक लक्षणों में कमी लाई जाती है और शरीर में उत्तेजना का प्रभाव अवरुद्ध किया जाता है.   

डर को बीमारी न बनाएं, समय रहते इलाज कराए. फोबिया एक प्रकार का ऐसा ही आधारहीन डर या एहसास है जोकि बेचैनी, घबराहट, अशांति पैदा कर देता है. कोई भी चीज, वस्तु, हालात आदि जो भी पीडि़त को परेशान करते हैं, वह उन्हें नजरअंदाज करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है
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Thank you
Dr. Tarun Nigam
manasmanorog.com
Ratan Lal Nagar Kapur

Ashok Nagar Kanpur

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